और एक साल विदा हो रहा है,
कई हुए पुरे सपने
तो कुछ अधूरे ले जा रहा है।
कोई अपनों को ठुकरा के
तो कोई अपनापन फैला के जा रहा है,
कोई रूठे को मना के
तो कोई रिश्ते बना के जा रहा है।
कहीं सूखा है इस धरा पर
तो कहीं कलियाँ खिला के जा रहा है,
पर्वतों से पिघलता बर्फ का पानी
कल-कल नदियों में समाते जा रहा है।
अंधकार में डूबा वो क़स्बा भी
अब रौशनी से जगमगाते जा रहा है,
भूल जाओ अब जो हुआ इस साल यहाँ
नए साल का आगाज होने जा रहा है।
- रजनीकांत कुमार
कई हुए पुरे सपने
तो कुछ अधूरे ले जा रहा है।
कोई अपनों को ठुकरा के
तो कोई अपनापन फैला के जा रहा है,
कोई रूठे को मना के
तो कोई रिश्ते बना के जा रहा है।
कहीं सूखा है इस धरा पर
तो कहीं कलियाँ खिला के जा रहा है,
पर्वतों से पिघलता बर्फ का पानी
कल-कल नदियों में समाते जा रहा है।
अंधकार में डूबा वो क़स्बा भी
अब रौशनी से जगमगाते जा रहा है,
भूल जाओ अब जो हुआ इस साल यहाँ
नए साल का आगाज होने जा रहा है।
- रजनीकांत कुमार
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