मोतियों सा चमकता आँसूओं की एक बूँद,
एक तरफ है कौतुहल तो दूसरी तरफ धुंध,
आसमान के वो तारे हैं हम सब के प्यारे,
न गम है किसी का न हैं किसी के सहारे,
चिड़ियों की चहचहाहट हवा की सरसराहट,
अजीब सी है हलचल और थमा है वो आहट,
कलकल करती नदियाँ भी ठहर सा गया है,
यहाँ भी तो अब मौसम बदल सा गया है।
जहाँ थी हर तरफ पंछियों का वसेरा
अब खुल गयी हैं आँखे और हो गया सवेरा..
- रजनीकांत कुमार
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