दिवाली हर कोई के लिए खास है,
इधर समृद्धि तो उधर विकास है...
किसी के पास पटाखे झकास है,
तो किसी को फुलझरी का अहसास है...
क्यू जलाते हो इन बारूद के ढेरों को,
अब तो सोच लो प्रदुषण के इन फेरों को...
अगर जलाना इतना ही जरुरी है,
अगर जलना इतना ही जरुरी है...
तो अपने अंदर के ईर्ष्या और नफरत को जलाओ,
आपसी प्रेम और सौहार्द के दिए जलाओ...
आओ कुछ इस तरह दिवाली मनाओ...
आओ कुछ इस तरह दिवाली मनाओ...
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