कडवी बातों से दिल को भेदने
वाले तीर,
होठों की प्यास बुझाने
वाले नीर,
ढोंग रचने वाले लकीर के
फ़क़ीर,
मैं रोज देखता हूँ...
वो बसों में लटकते लोग,
बीच सड़क पर गाड़ी खड़े करते
लोग,
व्यस्त जिंदगी और अपनों
से दूर होते लोग,
कहीं पानी बिन सब सुन की
कहानी,
और लोगों का हर जगह मनमानी,
मैं रोज देखता हूँ...
वो रोज बनते हजारो मकान,
फिर भी लोग घरों के लिए
परेशान,
बिन मौसम के आंधी और
तूफान,
हर जगह आपाधापी और घमासान,
मैं रोज देखता हूँ...
वो रेड लाइट पर भीख मांगते बच्चे,
कुछ मासूम, कुछ सरारती और कुछ सच्चे,
इन सबको को बढ़ावा देने
वाले सब लोग अच्छे-अच्छे,
मैं रोज देखता हूँ...
और बस एक ही सवाल उठता है
मन में की कब बदलेंगे ये हालात,
आखिर और कितने दिन और रात...??
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प्रयास अच्छा लगा तो अपना विचार कॉमेंट के माध्यम से जरूर दें...
धन्यवाद...!!